बुधवार, 22 जून 2016

70 साल की बुजुर्ग मां को बेटों ने सड़क पर छोड़ दिया बेसहारा...

नाम-लता बाई. उम्र-70 साल के करीब. परिवार में- दो बेटे, तीन बेटियां और दर्जन भर नाती-पोते. पता- कलेक्टोरेट चौक का बस स्टॉप (मंगलवार शाम से माना वृद्धाश्रम). भरा-पूरा परिवार, पर किसी के भी दिल और घर में इस बुजुर्ग के लिए जगह नहीं.
कुछ दिनों पूर्व मेरी दोस्त नचिकेता तिवारी की नजर उस बुजुर्ग पर पड़ी. आॅफिस आते-जाते वक्त वह रोज उसे उसी जगह पर गुमसुम, उदास और अकेली बैठी मिलतीं. उसने करीब सप्ताह भर देखा, पर उससे और अधिक देखा न गया. रविवार को उसने मुझे फोन किया और उनके बारे में बताया. उसने कहा, हमें उनके लिए कुछ करना चाहिए. मैने पूछा-क्या? उसने कहा, उन्हें किसी वृद्धाश्रम में भर्ती करा देते हैं. बरसात का मौसम है, कैसे रहेंगी वे उस शेड के नीचे. मैने कहा-चलो कल देखते हैं. सोमवार को मैं उन बुजुर्ग से मिलने पहुंचा. सोचा, पहले उनसे बात कर लूं. पता तो करूं कि वे वहां शेड के नीचे क्यों रह रहीं हैं. पर, उन्होंने अपनी जो कहानी बताई उससे मेरी आंखें भर आईं. उन्होंने तीन दिनों से कुछ खाया-पिया भी नहीं था. वे रोजाना अंबेडकर अस्पातल के पास से खाना लेकर आती थीं और दोनों वक्त खाती थीं, लेकिन चार दिन पहले उनके एक्सीडेंट हो गया. किसी आॅटो वाले ने टक्कर मार दी. पैर में चोट लगी तो चलना-फिरना बंद. लेकिन पेट की मजबूरी देखिए, वे दूसरे दिन भी खाना लाने निकली, लेकिन चलते हुए नहीं, घिसटते हुए. सड़क गर्म थी, हाथ जल गए. फफोले पड़ गए. तेज दर्द होने लगा. ऊपर से पैर की चोट. लेकिन ये सारे दर्द उस दर्द के आगे कमजोर थे, जो उन्हें अपनों ने दिया था. इसलिए वे इस दर्द को आंसुओं के साथ पी गईं, बिना किसी को कुछ बोले. मेरी उनसे मुलाकात हुई तो उन्होने मुझे अपने घर-परिवार के बारे में बताया. अपने बेटे और बेटियों के बारे में बताया. उन बहुओं और पोते-पोतियों के बारे में भी बताया जो उन्हें देखते ही घर का दरवाजा बंद कर लेते हैं. सब सुनकर मन टूट सा गया और दिल से यही निकला कि भगवान और किसी को ऐसे दिन मत दिखाना. मैने उनसे वृद्धाश्रम में रहने के लिए पूछा तो वे तैयार हो गईं. हालांकि अपने स्तर पर वे पहले प्रयास कर चुकीं थीं, लेकिन किसी ने उन्हें रखा नहीं था. मेरे साथ मेरा दोस्त शेखर झा भी था, जिसने उनके लिए खाने का इंतजाम किया. इसके बाद हमने वृद्धाश्रम में उनके रहने के इंतजाम को लेकर फोन लगाना शुरू किया. कई लोगों से बात हुई, पर बात नहीं बनी. प्रयास दूसरे दिन मंगलवार को भी प्रयास जारी रहा. सरकारी और प्राइवेट दोनों संस्थाओं से बात हुई, लेकिन कई तरह की अड़चनों के चलते बात नहीं बन पाई. आखिरकर समाजकल्याण विभाग के राजेश तिवारी जी से मेरी बात हुई. उन्होंने तत्परता के साथ मेरी मदद की. मुझे माना वृद्धाश्रम के शरद तिवारी जी का नंबर दिया. उनसे बात हुई. वे उन बुजुर्ग को रखने के लिए तैयार हो गए. थोड़े देर में उन्होंने मुझे समाज कल्याण विभाग के ठाकुर साहब का नंबर दिया. शाम चार बजे के करीब ठाकुर साहब उन्हें ले जाने के लिए आ गए. मैं भी पहुंच गया. मैने जब उन्हें बताया कि आपके रहने का इंतजाम माना वृद्धाश्रम में हो गया है तो वे बहुत खुश हुईं. उनकी आंखों में आंसू भर आए. उन्होंने मुझे ढेर सारा प्यार और आर्शिवाद दिया. साथ ही जाते-जाते बोलीं कि मिलने के लिए जरूर आना...
फिलहाल वे ठीक है. हाथ-पैर के चोट का इलाज हो रहा है. लेकिन जो चोट अपनों ने दिया है, वह शायद ही भर पाए.
मेरे इस छोटे से प्रयास में उन सभी का धन्यवाद जिन्होंने मेरा सहयोग किया. खासकर नचिकेता, शेखर झा, राजेश तिवारी जी, शरद तिवारी जी, ठाकुर साहब, बढ़ते कदम के राजू धम्मानी, पहलाज जी सभी का ह्रदय से 


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आप सभी से निवेदन है कि शहर में कहीं भी वृद्धा या वृद्ध सड़क पर या कहीं और बेघर मिले तो आप हमें सूचना दे| उनकी हम मदद करेगे| शहर के वृद्धा आश्रम में बात कर उनके रहने की व्यवस्था की जाएगी| इस काम की शुरुआत प्रफुल्ल भईया ने कई साल पहले कर दिया था, लेकिन कचहरी चौक पर एक महिला की मदद कर के मन को शांति मिली| आप शेखर को 8982224445, प्रफुल्ल को 8827824668 पर कर सकते है|