रविवार, 5 नवंबर 2017

चार महीने में ही बदला-बदला सा लगने लगा अपना पटना

छठ पूजा में अपने गांव राघोपुर(बिहार के मधुबनी जिले से 8 किलोमीटर दूर) जाना हुआ। पटना से होकर ही गांव जाते हैं। हालांकि हर बार की तरह इस बार भी  गांव में ज्यादा दिन तो नहीं रहा, लेकिन 48 घंटे पटना में गुजारे। इस दौरान बहुत कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। सरकार तो पिछली बार आने पर ही बदल गई थी। जो भी है, जैसा भी है, लेकिन पहले से पटना बदला-बदला सा लग रहा था।
      मैं 21 अक्टूबर को साउथ बिहार एक्सप्रेस ट्रेन से राजेन्द्र नगर टर्मिनल पर उतरा। स्टेशन से बाहर निकलकर पटना स्टेशन जाने के सड़क क्रॉस कर ऑटो पकड़ा। जाम होने के कारण फ्लाई ओवर के नीचे करीब आधा घंटा ऑटो में बैठा रहा। इस दौरान बैठे-बैठे  सब चीजों को निहार रहा था। लग रहा था कि बिहार में अब विकास हो रहा है। वैसे तो मैंने 30 नवम्बर 2016 को रायपुर को अलविदा कह दिया था। पटना में दैनिक जागरण संस्थान में नौकरी की शुरुआत की, लेकिन ज्यादा दिन नहीं रह पाया। यह भी कह सकते हैं कि मन नहीं लगा या फिर यह भी कह सकते हैं कि रायपुर वाले बड़े भाई, छोटे भाई, दोस्त सहित हमसे जुड़े लोगों के प्यार ने 9 महीने में ही वापस खींच लाया। यह इसलिए बता रहा हूं क्योंकि रायपुर आने के 4 महीने में बाद पहली बार घर जाना हो रहा था। पटना स्टेशन के सामने लम्बे समय से आर ब्लॉक से राजेन्द्र नगर जाने वाले फ्लाइ ओवर का भी काम लगभग पूरा-पूरा सा हो चुका है। पटना में रहने के दौरान काम के चलते स्टेशन जाना हुआ करता था। पर सही बताएं तो कभी भी खुश मन से नहीं जाता था, क्योंकि पटना स्टेशन या राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्टेशन जाने के लिए भीड़ का सामना करना पड़ता था, वह भी दो-चार मिनट का नहीं, बल्कि आधे घंटे या उससे अधिक। वहां लगने वाले जाम में मैं भी अक्सर फंस जाता था। उस फ्लाइ ओवर के दोनों साइड से काम पूरा हो चुका है। स्टेशन के सामने वाले हिस्से का काम बचा है, जो दिन-रात तेजी से चल रहा है। सही कहूं तो फ्लाइ ओवर बनने से जाम की स्थिति पूरी तरह खत्म हो जाएगा। गांव की यादें, ट्रेन का सफर सहित अन्य यादगार लम्हों को जनता दरबार पर आप से शेयर करुंगा। यह पहली कड़ी थी। 

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

पहली बार कुछ क्रिएटिव किया हूं…

मैंने न तो किसी विश्वविद्यालय से वीडियो एडिटिंग का कोर्स किया है और न ही ट्रेनिंग… एक दिन मन में आया कि क्यों न एक वीडियो एडिट किया जाए। वाट्सअप पर आने वाले वीडियो को देखकर बार-बार मेरा मन भी करता था। इस बीच एक दिन मैंने गुगल बाबा को प्रणाम किया और उसके बाद फ्री वाला वीडियो एडिटिंग का सॉफ्टवेयर तलाशने लगा, जो काफी मशक्कत करने के बाद मिल गया। इसके बाद क्या… नेक काम में देरी थोड़े न कोई करता है। सॉफ्टवेयर  को डाउनलोड किया। फिर सोचा कि किस टॉपिक पर पहला वाडियो तैयार किया जाए… ऑफिस के कुछ साथियों से भी पूछा, उनका जवाब था कि दिवाली पर ही कुछ देख लो, क्योंकि दिवाली के बस कुछ दिन ही तो बचे हैं। मैंने भी सोचा कि जैसा भी वीडियो बने, लेकिन दिवाली पर बधाई देने वाला ही वीडियो तैयार करूंगा। वीडियो बनाने के दौरान ऑफिस के साथी अंकुश भाई से कुछ मदद भी लेनी पड़ी और आधे घंटे के बाद एक वीडियो तैयार हो गया, जो कुछ ऐसा है…  क्लिक करें और वीडियो देख सकते हैं… और हां... मुझे सुझाव देना न भुलिएगा… 


शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

रोना आता है जब त्योहार में घर से दूर रहता हूं

त्योहार पर घर से दूर रहना कितना उदास कर देता हैयह वही समझ सकते हैंजो रोजी-रोटी की जद्दोजहद के चलते चाहकर भी ऐसे समय में परिवार के पास नहीं पहुंच पाते। मैं भी घर और परिजनों से दूर हूं। मेरे जैसे कई हजारों लोग भी त्योहार पर अपने घर नहीं जाते होंगे। ज्यादा से ज्यादा यह कि त्योहार के दिन घरवालों से फोन पर बात कर ली। हालांकि अब टेली कॉलिंग की सुविधा भी है। अपनी बात करुंतो त्योहार के मौके पर घर पर ना जा पानामुझे रुला देता है। कुछ देर को जी चाहता है कि सब छोड़-छाड़कर घर भाग जाऊं। परिवार के साथ खुशियां मनाऊंलेकिन यह मुमकिन नहीं। मैं पिछले 11 साल से घर से दूर हूं। कॉलेज के समय त्योहार से पहले लंबी छुट्‌टी पर घर चला जाता था। नौकरी शुरू होने पर क्या त्योहार और क्या आम दिनसब एक जैसे हो गए। कई बार तो पता तक नहीं चलता कि आज कोई त्योहार है। पढ़ाई के दौरान दुर्गा पूजा में घर जाता थातो दीपावली और छठ मनाकर ही लौटता था। अब ले-देकर ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्‌टी मिलती है। इसमें भी आने-जाने का दिन शामिल होता है। मैं बिहार के मधुबनी जिले का रहने वाला हूं।रायपुर से बिहार के लिए ज्यादा ट्रेनें भी नहीं हैं। कुछ साल पहले तक तो सिर्फ एक ट्रेन हुआ करती थी साउथ बिहार एक्सप्रेस। रायपुर से सुबह 8 बजे सवार होंतो अगले दिन सुबह 9 बजे राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्टेशन पहुंचाती है। फिर बस से मधुबनी तक के सफर में करीब 4-5 घंटे लगते हैं। मधुबनी बस स्टैंड पर अगर फौरन गाड़ी मिल जाएतो समझिए आप किस्मत के धनी हैं। नहीं तो फिर किसी सवारी गाड़ी का इंतजार करें या फिर ऑटो वाली की लूट का शिकार बनें। पिछले कई सालों की तरह इस साल भी मुझे दीपावली घर से दूर ही मनानी होगी। यह और बात है कि लंबे अरसे बाद मुझे परिवार के साथ छठ पूजा मनाने का मौका मिलने वाला है। छठ पूजा का आंखों देखा हाल जनता दरबार पर आपसे जरूर शेयर करूंगा। तो फिर लगे रहिएमजे लेते रहिए और सुझाव भी देते रहिए।

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

तैयार रहो भाई…एक और बाबा की होगी धमाकेदार एंट्री

बाबायह शब्द सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं। दिमाग में फौरन खबरें चलने लगती हैंठगीधोखाधड़ीमहिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ आदि-आदि। यहां तक कि आप बिना जाने-समझे पुरानी कुंडली को खंगालते हैं और नए सिरे से कुंडली तैयार करते हैं। यह भी आसारामराम रहीम जैसा कैरेक्टर लैस होगा। मैं बाबाओं का सपोर्ट एकदम नहीं करता हूंलेकिन कुछ बाबाओं के चलते सभी को गलत बताना भी सही नहीं है। जिस प्रकार हाथ की सभी उंगलियां एक बराबर नहीं होती हैंउसी प्रकार सभी बाबा एक तरह के नहीं होते हैं। राम रहीम को सजा होने के बाद देशभर में फैले बाबाओं पर चर्चा गर्म है। आसारामसुखबिंदर कौर उर्फ राधे मांसच्चिदानंद गिरि उर्फ सचिन दत्ताओम बाबा उर्फ विवेकानंद झानिर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंहइच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदीस्वामी असीमानंदऊँ नमः शिवाय बाबानारायण साईंरामपालआचार्य कुशमुनिबृहस्तपति गिरि और मलखान सिंह खासे मशहूर हैं।
            मैं जिस बाबा की बात कर रहा हूंउसके बारे में खुद बाबा तक नहीं जानते हैं। मैं भी नहीं जानता थालेकिन करीब-करीब जानने लगा हूं। नए बाबा की धमाकेदार एंट्री होने वाली है। इसको लेकर तैयारी जोरों से चल रही है। अब आप भी सोच रहे होंगे कि यह बाबाकौन हैनाम क्या है। यह बाबा हैं… कुडकुडे बाबा। बाबा और उनकी खासियत के बारे में अधिक जानकारी के लिए जनता दरबार’(jantadrbar.blogspot.in)  पर दोबारा तशरीफ लाइए।


सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

कलम छोड़कर लैपटॉप थामने तक की कश्मकश

पत्रकारिता करते हुए महज पांच साल ही हुए हैं। प्रिंट मीडिया के कई संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। इस दौरान कई नई चीजें भी जानने-सीखने को मिली। कहीं खुलकर लिखने की आजादी मिलीतो कहीं चेहरा और विभाग के अधिकारियों को देखकर खबरें लिखने का फरमान भी मिलता था। फॉलो करना मजबूरी भी थीनहीं करता तो नौकरी से हाथ धो बैठता। इसलिए बॉस का आदेश हमेशा सर-आंखों पर रखना होता था। इस बीच मैंने डिजिटल मीडिया में एंट्री की। कोई अनुभव नहीं था। एकदम शून्य था। ऑफर लेटर मिलने के बाद कई लोगों को बताया कि अब मैं अखबार में नहींबल्कि मोबाइल और लैपटॉप में दिखाई दूंगा। कई लोगों ने तो सुनते ही विरोध किया। इतने अच्छे से नौकरी चल रही है। डिजिटल मीडिया में जाकर कुछ नहीं होगा। जो नाम हैवह भी खत्म हो जाएगा। वहां से अगर प्रिंट मीडिया में एंट्री करना चाहोगेतो संभव नहीं होगा। सभी की बातों को सुनने के बाद मेरा भी दिमाग काम नहीं कर रहा था। आखिर करूंतो करूं क्या। बीच मझधार में फंस गया था। लेकिन हिम्मत जुटाकर मैंने डिजिटल मीडिया की दुनिया में कदम रख दिया। कुछ दिनों तक वाकई उन सभी लोगों की कही बात याद आती थीलेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गएवैसे-वैसे मेरे अंदर हिम्मत आती गई। सही बताऊं तोदोस्तों प्रिंट मीडिया की दुनिया का अलग मजा है और डिजिटल मीडिया का अलग। मौका मिलेतो एक बार जरूर काम कर के देखिएगा। आपको खुद  खुद पता चल जाएगा। वैसे बता दूंमेरे साथ अभी प्रिंट मीडिया के जैसे अनुभव डिजिटल मीडिया में नहीं पेश आए हैं। नए तजुर्बों के साथ आपसे जनता दरबार पर नए टॉपिक के साथ फिर मुलाकात होगी।


गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

विश्वविद्यालय परीक्षा में बैठेंगे गणेश भगवान

भले शेयर बाजार गोते लगाएबाजार चरमरा कर गिरनेवाला होदिवाली में लक्ष्मी-गणेश की पूजा करीब-करीब हरेक हिंदूवादी परिवारप्रतिष्ठान में जोर-शोर से होता है। गणेश चतुर्थी में तो पूरा महाराष्ट्र ही गणेश के रंग में रंग जाता है। पर इन दिनों बिहार के मिथिलांचल के शान कहे जाने वाला मिथिला यूनिवर्सिटी जो हुआ है उससे सभी सन्न हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है गणेश भक्ति का प्रभाव है या बीजेपी-नितिश सरकार का गठबंधन का भगवान के ओर कुछ ज्यादा ही झुकाव या फिर परीक्षा व्यवस्था की क्वालिटी जांच करने का अनोखा तरीका -- यूनिवर्सिटी प्रशासन ने तो गणेश भगवान को ही परीक्षा में बिठाने की ठान ली है। हाल ही में यूनिवर्सिटी प्रशासन ने परीक्षा के लिए जो एडमिट कार्ड जारी किया वहां पर अभ्यर्थि के जगह पर भगवान गणेश का सजीव फोटो लगा दिया और उनके हस्ताक्षर भी गणेश के नाम से करवा लिए। जिन विधार्थि के नाम से एडमिट कार्ड निकला है वे भाई परेशान होकर मारे फिर रहे हैं कि बिना बताए यूनिवर्सिटि ने उनका भगवान गणेश के साथ गठबंधन तो करवा दिया लेकिन परीक्षा में अब जाएगा कौनकहां से लाए गणेश भगवान कोहम सभी मिथिला यूनिवर्सिटी पूर्व छात्र जो त्रिवर्षीय बीए की डिग्री को चार साल में लेकर निकलेमिथिला यूनिवर्सिटी प्रशासन के इस कारगुजारी को लेकर काफी हलाकान एवं परेशान हैं और अपनी सारी संवेदनाएं इस छात्र को समर्पित करते हैं। क्योंकि हमारा तो यूनिवर्सिटी ने सिर्फ एक साल जाया किया लेकिन पता नहीं इस छात्र के कितना समय चला जाएगा। कई लोग तो कहते हैं कि भगवान को पाने में कई युग लग जाते हैं। पता नहीं क्या होगा इस भाई का? “ वैसे भी हमसे जो पहले लोग-बाग लालू डिग्री में यूनिवर्सिटी में परीक्षा दिए थेवो तो घरे ले जाकर कॉपी लिखे पर पता नहीं हमारे समय का हुआससुरा सीएम आर्टस में सेंटर था एको गो विधार्थि को चिटे नहीं ले जाने देता था। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस पर अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा की चूंकि एडमिट कार्य आउट सोर्स किया गया था इसलिए ऐसा हो गया। हम इस मामले को दिखवाते हैं। हम आपकी बात से सहमत हैं- “आउट सोर्सिंग न बहुते बेकार चिज हैं उधर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप परेशान हैंछत्तीसगढ़ में रमन सिंह और ई यूनिवर्सिटी में बेचारा ई परिक्षार्थि “प्रशासन-सुशासन बाबु पर सोचिए बेचारे इस भाई का क्या हुआ होगा। क्या यूनिवर्सिटी प्रशासन को इन्हें मुआवजा नहीं देना चाहिएपर मिलेगा नहीं। ये तो बिहार हैं आप तो जानते हीं शिक्षा व्यवस्था के साथ सबसे खतरनाक एक्सपेरिमेंट यहीं होता है। शायद इसलिए यहां कभी गौतम बुद्ध को ज्ञान मिल जाता था तो कभी घर में ही कापी ले जाकर परीक्षा देने का चलन था। भाई अब इस राज्य में मामला एक कदम और आगे निकल गया अब गणेश जी को आकर परीक्षा देना पड़ रहा है। उनको मजबूरी में साईन भी करना पड़ा है....ये प्रभु यहां को तो भगवान ही मालिक.....जय गणपती बप्पा मोरया

सौजन्य – Avdhesh Mallick

नोट – इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैंइस लेखक में दी गई किसी भी सूचना की ‘जनता दरबार’ उत्तरदायी नहीं है. 

सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

न बोलने की आजादी और न ही लिखने की

पत्रकारों को बोलने की आजादी नहीं है... सच लिखना तो जुर्म माना जाता है... ऐसे में बताओ भला न कुछ बोल सकते हैं और न ही लिख सकते हैं... यह कैसी आजादी है... सोमवार को पत्रकारों ने रायपुर प्रेस क्लब से राजभवन तक शांति मार्च निकाल आवाज बुलंद की...  शांति मार्च में प्रदेश भर के पत्रकार साथी सम्मिलित हुए। देश भर में पत्रकारों के ऊपर लगातार हमले हो रहे हैं। हाल ही में बीजापुर से एक वायरलेस सन्देश लीक हुआ है। जिसमें रिपोर्टिंग के लिए गए पत्रकारों को मरवा देने के निर्देश दिये जा रहे हैं। इस वायरलेस सन्देश के सामने आने के बाद पूरी पत्रकार बिरादरी चिंतित हो उठी है। पत्रकार एकजुटता का संदेश दिया गया। शांति मार्च में 300 से अधिक पत्रकार अपनी इसी चिंता और अपने साथियों की सुरक्षा की मांग को शांति मार्च निकाला गया और शामिल हुए।


रविवार, 1 अक्तूबर 2017

रायपुर का नाम फिर हुआ रोशन

बधाई हो… रायपुर का नाम फिर से रोशन हुआ है। रायपुर का स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट देशभर में कस्टमर सेटिस्फेक्शन के मामले में एक बार फिर से पहले स्थान पर रहादेश के 53 एयरपोर्ट को पीछे छोड़ते हुए रायपुर एयरपोर्ट ने अपनी यह जगह बनाई। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की हाल ही में जारी सर्वे रिपोर्ट में रायपुर एयरपोर्ट को कस्टमर्स ने सुविधाओं के मामले में सर्वश्रेष्‍ठ बतायारायपुर एयरपोर्ट के नाम से पहचाने जाने वाले इस एयरपोर्ट का नाम 24 जनवरी 2012 को स्‍वामी विवेकानंद एयरपोर्ट किया गया था स्‍वामी विवेकानंद ने अपनी किशोरावस्‍था में दो साल रायपुर में बिताए थे और उसी की याद में इसका यह नामकरण किया गया

डर सा लगता है कुछ लिखने में


डर सा लगता है कुछ लिखने में। सोचता हूं अगर मैं कुछ लिखता हूं और उसमें कोई गलती हो जाती है तो आप क्या कहेंगे? यही बोलेंगे न कि देखो इसको लिखना भी नहीं आता है और चला है ब्लॉग लिखने। पर मैं आपको बता दूं मुझे आपके बातों का जरा सा भी अफसोस नहीं होगा, क्योंकि मुझे अपनी गलती जानने और उसको सुधारने का एक सुनहरा मौका मिलेगा। वैसे मैं आपको पहले ही बता देता हूं कि मैं हिन्दी का जानकार तो नहीं हूं, पर फिर भी लिखना चाहता हूं। लिखने को अनगिनत टॉपिक है। मैं सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक के डेली रूटीन को भी लिखूं तो मुझे बहुत मजा आएगा। आप का पता नहीं, पर कोशिश करुंगा कि आपको भी पढ़ने में मजा आए। मेरे इस ब्लॉग पर आप सभी का दिल से स्वागत है। आज(01 अक्टूबर 2017) से लिखने के सिलसिला का श्रीगणेश करने जा रहा हूं।