सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

कलम छोड़कर लैपटॉप थामने तक की कश्मकश

पत्रकारिता करते हुए महज पांच साल ही हुए हैं। प्रिंट मीडिया के कई संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। इस दौरान कई नई चीजें भी जानने-सीखने को मिली। कहीं खुलकर लिखने की आजादी मिलीतो कहीं चेहरा और विभाग के अधिकारियों को देखकर खबरें लिखने का फरमान भी मिलता था। फॉलो करना मजबूरी भी थीनहीं करता तो नौकरी से हाथ धो बैठता। इसलिए बॉस का आदेश हमेशा सर-आंखों पर रखना होता था। इस बीच मैंने डिजिटल मीडिया में एंट्री की। कोई अनुभव नहीं था। एकदम शून्य था। ऑफर लेटर मिलने के बाद कई लोगों को बताया कि अब मैं अखबार में नहींबल्कि मोबाइल और लैपटॉप में दिखाई दूंगा। कई लोगों ने तो सुनते ही विरोध किया। इतने अच्छे से नौकरी चल रही है। डिजिटल मीडिया में जाकर कुछ नहीं होगा। जो नाम हैवह भी खत्म हो जाएगा। वहां से अगर प्रिंट मीडिया में एंट्री करना चाहोगेतो संभव नहीं होगा। सभी की बातों को सुनने के बाद मेरा भी दिमाग काम नहीं कर रहा था। आखिर करूंतो करूं क्या। बीच मझधार में फंस गया था। लेकिन हिम्मत जुटाकर मैंने डिजिटल मीडिया की दुनिया में कदम रख दिया। कुछ दिनों तक वाकई उन सभी लोगों की कही बात याद आती थीलेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गएवैसे-वैसे मेरे अंदर हिम्मत आती गई। सही बताऊं तोदोस्तों प्रिंट मीडिया की दुनिया का अलग मजा है और डिजिटल मीडिया का अलग। मौका मिलेतो एक बार जरूर काम कर के देखिएगा। आपको खुद  खुद पता चल जाएगा। वैसे बता दूंमेरे साथ अभी प्रिंट मीडिया के जैसे अनुभव डिजिटल मीडिया में नहीं पेश आए हैं। नए तजुर्बों के साथ आपसे जनता दरबार पर नए टॉपिक के साथ फिर मुलाकात होगी।


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