छोटा था, तो फुटबॉल खेलता था. कपड़े बहुत गंदे होते थे. एक बार दोनों हाथ भी टूट गए.
मम्मी ने फुटबॉल खेल पर रोक लगा दी और इंडोर गेम खेलने कहा. इस बीच अखबार में
सप्रे शाला में समर कैंप की खबर छपी. मम्मी ने एडमिशन करा दिया. इसके बाद क्या था, मैंने भी फुटबॉल ने नाता तोड़ा और बैटमिंटन से जोड़ लिया. यह आप-बीती है स्वीडिश
इंटरनेशनल बैडमिंटन टूर्नामेंट और आइसलैंड ओपन
इंटरनेशनल बैडमिंटन कॉम्पीटिशन के विनर सिद्धार्थ प्रताप सिंह की. पिछले ही दिनों रायपुर पहुंचे सिद्धार्थ ने खेल के सफर को लेकर जो कुछ कहा, सुनिए उनकी
ही जुबानी…
जब मैंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया, तब 5वीं में पढ़ता था.
फुटबॉल खेलने के दौरान हाथ टूट गए थे, लेकिन उसके बाद
भी मैंने बैडमिंटन के अच्छे शॉट्स खेले. कोच कविता दीक्षित ने मम्मी पूनम सिंह से
कह दिया कि बैडमिंटन अच्छा खेल रहा है. इसको यही गेम खेलने दीजिए. इसके बाद पूरे
परिवार का सपोर्ट मिलने लगा. मैं तीन महीने में डिस्ट्रिक्ट खेलकर चैम्पियन बन गया. शुरुआती दिनों में सिर्फ एन्जॉय
के लिए बैडमिंटन खेला करता था, लेकिन जैसे-जैसे गेम
जीतने लगा, रैंक मिलती गई, तो
मेरे अंदर खेलने की भावना बढ़ते चली गई.
टॉप-10 में आने में लगे चार साल
मैं कड़ी मेहनत
कर तीन महीने में डिस्ट्रिक्ट चैम्पियन बन गया, लेकिन ऑल ओवर इंडिया टॉप-10 में जगह पाने में चार साल लग गए. इस बीच कई बार विनर बना और रनरअप भी, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी. जब भी जीत नहीं
पाता था, तो मम्मी हिम्मत देती थी और कहती थी कि आगे
बेहतर खेलना.
रायपुर
फैसिलिटी के मामले में बहुत पीछे
छत्तीसगढ़ से
बहुत अच्छे प्लेयर निकले हैं. छत्तीसगढ़ में खिलाड़ियों के लिए कोई खास
व्यवस्था नहीं है. दिल्ली, गुजराज, महाराष्ट्र की बात करें, तो वहां एक साथ आठ से
दस कोर्ट हैं, लेकिन रायपुर
में यह सुविधा नहीं है. यहां पर भी खिलाड़ियों के लिए कोर्ट, जिम, दौड़ने के लिए ग्राउंड के अलावा अन्य
सुविधाएं होनी चाहिए. उसके बाद ही अपना स्टेट आगे बढ़ पाएगा.
रायपुर आकर हो
गया था लिमिटेड
मेरे कैरियर को
देखते हुए फैमिली मेम्बर और कोच ने गोपीचंद एकेडमी में ट्रेनिंग लेने के लिए भेज
दिया. वहां ट्रेनिंग के दौरान मैंने खेल को और बेहतर किया. इस बीच रायपुर में साई ट्रेनिंग सेंटर खुलने वाला था, तो मैं रायपुर आ गया. रायपुर में बेहतर सुविधा नहीं होने से मैं खुद को लिमिटेड महसूस करने लगा.
इसके बाद दोबारा प्रकाश पादुकोण का कोचिंग सेंटर ज्वाइन करने की कोशिश की. तीन दिन ट्रायल के बाद चयन हो गया. फिलहाल
वहीं ट्रेनिंग ले रहा हूं. वहां ऑल इंडिया के सीनियर खिलाड़ी ट्रेनिंग लेते हैं.
उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
अपने भाई से
बहुत कुछ सीखा
मैंने अपने भाई
जयदित्य प्रताप सिंह से बहुत कुछ सीखा है. कभी कोई शॉट खेलने में
कंफ्यूजन रहता है, तो भाई से पूछता हूं. उसके खेलने का
तरीका शानदार है. कई शॉट्स अच्छा खेलता है. मैं उससे हर दिन सीखने की कोशिश करता रहता हूं.
पापा का सपना
कर रहा हूं साकार
जब भी जीत
हासिल करता हूं, तो अच्छा लगता है क्योंकि पापा का सपना था कि मैं स्ट्रीक वाले गेम खेलूं.
मैं और मेरा भाई दोनों बैडमिंटन में अच्छे से अच्छा परफॉर्म करने की कोशिश करते
हैं.
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