Anil Dwivedi
आप नेता और महिला बाल विकास
मंत्री संदीप कुमार की आई ताजा सेक्स-सीडी पर अजीब से तर्क
उठे हैं. सोशल मीडिया पर कईयों को इसमें कुछ भी गलत नही दिख रहा. ऐसे लोग सबसे
पहले 'रूस्तम' फिल्म देख आएं. हो सकता
है उनकी अक्ल के बंद पडे ताले खुल जाएं. और जो फिल्म नही देख सकते, वे रामायण के उस उत्तरकाण्ड युदधकाण्ड को पढ लें जिनकी धमनियों में यह
धार्मिक पुस्तक पीढी दर पीढी रचती-बसती आ रही है. रूस्तम फिलम में एक नौसेना का आॅफिसर
अपनी पत्नी के धो खे से इस कदर व्यथित है कि वह अपनी पत्नी के साथ अंतरंग संबंध
बनाने वाले ब्वॉयफ्रेण्ड की हत्या तक कर देता है. समाज जानता है कि रूस्तम ने
हत्या की है मगर चूंकि उसकी नजर में ये संबंध अनैतिक और अपराध जैसा है,
पति को धोखा देने की तरह है, इसलिए उसने
रूस्तम के कदम को सही बताया.
एक पत्नी या पति के होते हुए दूसरे से
नाजायज संबंध रखना, सिर्फ भारतीय समाज
में ही नहीं, उस अमरीका में भी अस्वीकार्य रहा है जहां यौन
संबंधों की मुक्त वकालत होती है. याद कीजिये अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल
क्लिंटन और मोनिका लेंविंसकी के बीच के अवैध संबंधों को- कोई सीडी या फोटो सामने
नही आए थे. मोनिका ने एफआईआर तक नहीं की थी मगर नैतिकता के पायदान से गिरकर अमरीकी
राष्ट्रपति जैसे पद की जो किरकिरी हुई, उसी से व्यथित होकर
क्लिंटन ने सार्वजनिक तौर पर अपनी पत्नी और अमरीकी समाज से माफी मांगी थी. अब आइए रामायण के उत्तरकाण्ड पर.
सिर्फ राजा की मर्यादा की रक्षा के लिए, लोकोपवाद से बचने के लिए राम ने सीता का परित्याग किया. पहली बार सीता ने
अगिनपरीक्षा दी क्योंकि उनके चरित्र पर संदेह उनके पति राम ने जताया था. तब सीता
ने यह कहते हुए अग्नि में प्रवेश किया कि अगर मेरा चरित्र शुदध हो तो अगिनदेव मेरी
रक्षा करें और सीता माता परीक्षा में खरी होकर वापस लौटी थीं. दुबारा जब इसी समाज
ने सीता के चरित्र पर उंगलियां उठाईं तो सीताजी ने कोई परीक्षा नही दी. उन्होंने
सीधे धरती को पुकारा और उसमें समा गईं. सवाल है सीता माता वापस क्यों नही
लौटी? वाल्मीकि यहां स्पष्ट करते हैं कि चूंकि पहली
बार उनके पति ने शक जताया था अत: खुद को पवित्र साबित करना, पत्नी
यानि सीता की जिम्मेदारी थी लेकिन जब दूसरी बार समाज ने चरित्रहीन होने की आशंका
जताई तो सीता को बचाने की जिम्मेदारी उनके पति यानि भगवान राम की थी लेकिन राम चुप
रहे. उनके सामने दो ही विकल्प थे. पहला वे सीता को साथ रखते और राजपाट छोड देते और
दूसरा सीता को छोडकर राजपाट संभाले रहते. एक राजा की पहली जिम्मेदारी अपनी प्रजा
यानि समाज की चिंता है इसलिए उन्होंने सीता को त्याज्य दिया. हो सकता है एक राजा के तौर पर भगवान राम को महज यह भय
था कि अगर उन्होंने सीता का पक्ष लिया तो कहीे पूरी प्रजा ही दुराचारी ना हो जाए
इसलिए भगवान राम ने सीता का परित्याग किया. इसीलिए कलियुग में हर राजनीतिक दल इसी
परिपाटी को आगे बढा रहा है. भाजपा से संजय जोशी, राघव महाराज, कांग्रेस से अभिषेक मनु सिंघवी या
मदेरणा जैसों को तुरंत निष्कासित किया गया क्योंकि ये सब राजा यानि मंत्री,
प्रवक्ता इत्यादि पदों पर थे जो कि सार्वजनिक नैतिकता के धरातल पर
हमेशा पाक साफ होने चाहिए और दिखने भी चाहिए.
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