शनिवार, 14 जुलाई 2018

जब लड़कियों को घर से निकलना था मना, तब स्वीमिंग कॉस्टूयम में की प्रैक्टिस : परम पॉल


मैं सातवीं में थी, तब से स्वीमिंग की ट्रेनिंग के लिए जाती थी. उस समय लड़कियों का घर से निकलना मना था. इसके बाद भी मैं स्वीमिंग कॉस्टूयम में प्रैक्टिस करती थी. पापा का पूरा सपोर्ट था, जिसके कारण ही मैंने यह मुकाम समय रहते हासिल कर लिया. यह कहना है सीनियर स्वीमिंग कोच परम पॉल का. वह बेंगलुरु सहित कई राज्यों में सेवा देने के बाद वह इंडियन स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री में काम कर रही हैं. नौकरी करते हुए 34 साल पूरे हो चुके हैं. फिलहाल वह दिल्ली से रायपुर आई हैं. वह स्वीमिंग की ट्रेनिंग ले रहे पुरई गांव के बच्चों की रिपोर्ट तैयार कर खेल मंत्रालय को सौंपेंगी. उन्होंने खेल को लेकर देश में बदलते माहौल को लेकर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि स्वीमिंग पहले से बहुत बदल चुका है. पहले स्वीमिंग की प्रैक्टिस के लिए गिने-चुने बच्चे आते थे, आज बड़ी संख्या में आ रहे हैं. यही नहीं कड़ी मेहनत कर देश को मैडल भी दिला रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे इंटर यूनिवर्सिटी लेवल के मैच में कई मैडल अपने नाम कर चुकी हैं. उन्होंने रायपुर को लेकर कहा कि मैं बहुत ज्यादा तो नहीं, लेकिन जो बच्चे प्रैक्टिस कर रहे हैं, उनको देखकर यह जरूर कर सकती हूं कि बच्चे बहुत मेहनती हैं और जुनूनी हैं.
परम पॉल
मम्मी कहती थी- स्वीमिंग करो, डूबना नहीं 
परम पॉल ने बताया कि घर वालों का पूरा सपोर्ट था. मम्मी ने कभी स्वीमिंग करने को लेकर मना नहीं किया. पापा का पहले दिन से पूरा सपोर्ट मिला. पापा ने मेरी प्रैक्टिस देखकर कुछ दिनों के बाद खुद ही स्वीमिंग ज्वाइन कर ली. मम्मी का कहना था कि स्वीमिंग करोए लेकिन डूबना मत.

क्रिकेट की तरह स्वीमिंग को मिले बढ़ावा 
उन्होंने कहा कि स्वीमिंग के मैच गांव स्तर पर शुरू होने चाहिए. इससे ब्लॉक, जिला, राज्य और फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने में आसानी होगी. अच्छे खिलाड़ी निकलेंगे. अभी के बच्चे भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. क्रिकेट की तरह भी स्वीमिंग को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

नोट : यह खबर नारदपोस्ट डॉट न्यूज(Naradpost.news) में प्रकाशित हो चुका है. 


रविवार, 1 जुलाई 2018

बुआ को देख शुरू किया खेलना, दो साल में किया इंडिया कैंप तक का सफर


बुआ हर दिन सुबह-शाम प्रैक्टिस करने जाती थी. उनको देखकर मेरे मन मैं भी आया कि क्यों ना मैं भी बुआ के साथ खेलने जाऊं. दो साल पहले फुटबॉल खेलना शुरू किया. उस वक्त कोई सपना नहीं था. धीरे.धीरे खेल सुधरता गया. एक समय आया कि हर कोई मेरा खेल देख प्रभावित होने लगा. फिर मैंने भी कड़ी मेहनत की. इस बार जरूर दिमाग में था कि कुछ करना है. इसी कड़ी मेहनत का नतीजा है कि मेरा सलेक्शन इंडिया कैंप में ट्रेनिंग के लिए हुआ. यह अनुभव साझा कर रही हैं रायपुर की फुटबॉलर प्रियंका फूटान. प्रियंका कोलकाता में 8 नवंबर से 8 दिसंबर तक अंडर-15 इंडिया कैंप से ट्रेनिंग लेकर लौटी हैं. प्रियंका ने फुटबॉल से जुड़े हर मुद्दे पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि इंडिया कैंप में एक महीने में जिस स्तर की ट्रेनिंग देते हैं, वैसा शायद ही छत्तीसगढ़ में मिल पाए. छत्तीसगढ़ में ट्रेनिंग की अच्छी व्यवस्था है, लेकिन हार्ड प्रैक्टिस नहीं होती. पहले सुबह उठकर कोचिंग जाती थीए फिर स्कूल से लौटकर कुछ खाकर सीधा ग्राउंड जाती थी. शुरू.शुरू में काफी दिक्कत हुई, लेकिन अब प्रैक्टिस में सब आ गया है. 

इस तरह हुआ सलेक्शन
पिछले दिनों मिजोरम में छत्तीसगढ़ की महिला फुटबॉल टीम खेलने गई थी. टीम में प्रियंका का भी सलेक्शन हुआ था. मैच के दौरान प्रियंका का शानदार परफॉर्मेंस रहा. सलेक्टर्स ने प्रियंका का खेल देखकर इंडिया कैंप के लिए सलेक्ट कर लिया. प्रियंका अब तक छह से अधिक स्कूल नेशनल और ओपन नेशनल खेल चुकी है.

कैंप में मिले नए दोस्त
प्रिंयका के अनुसार इंडिया कैंप के लिए जब मेरा सलेक्शन हुआ तो मैं बहुत खुश थी. घर वाले भी खुश थेए लेकिन मन में डर था क्योंकि कैंप में पहचान का कोई नहीं था. कैंप में जाने के बाद सीखने को तो मिला हीए साथ ही नए दोस्त भी बने.

इंडियन टीम को रिप्रजेंट करने का सपना
प्रियंका का कहना है कि हर खिलाड़ी का सपना होता है वह इंडिया टीम को रिप्रजेंट करे. मेरा भी सपना है कि मैं इंडियन फुटबॉल टीम की ओर से खेलूं. उसको रिप्रजेंट करूं. इस बार इंडिया टीम के लिए सलेक्शन नहीं हो पाया है. अगली बार फिर से कोशिश करुंगी कि मेरा सलेक्शन इंडियन टीम में हो और मैं देश के लिए खेलूं.

सपने को साकार करने में इनका रहा योगदान
प्रियंका के अनुसार बुआ को खेलता देख मैंने भी प्रैक्टिस की. इसके बाद कोच सरिता कुजूर और कोच मुश्ताक अली प्रधान ने खेलने के लिए तैयार किया. इन सब के अलावा पापा तरुण फूटान का योगदान है. वे हर समय मेरे साथ खड़े रहते हैं.


मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

एशिया चैंपियनशिप में छत्तीसगढ़ के इस खिलाड़ी ने बनाई जगह, कल हांगकांग के खिलाड़ी से है मैच


छत्तीसगढ़ के वेंकट गौरव प्रसाद और जूही देवांगन की जोड़ी का कमाल बुधवार को चीन में देखने को मिलेगा. चीन में बैडमिंटन एशिया चैम्पियनशिप की शुरुआत मंगलवार से हो चुकी है, जो 29 अप्रैल तक चलेगा. इसमें मिक्स्ड डबल्स कैटेगिरी में वेंकट और जूही का मैच बुधवार को होगा. शाम 4 बजे से शुरू होने वाले मैच में उनका मुकाबला हांगकांग के ली चूं लेई रेगिनॉल्ड और चाऊ होई वॉ के साथ होगा. चैम्पियनशिप में वेंकट और जूही की जोड़ी को मैन ड्रॉ से मिक्स्ड डबल्स कैटेगिरी में एंट्री मिली है. 

मालूम हो कि पिछले दिनों भारतीय बैडमिंटन संघ की ओर से रैंकिंग लिस्ट जारी गई थी. इसमें अंबिकापुर के वेंकट गौरव प्रसाद 1218 अंक के साथ पहले स्थान पर थे. भिलाई की जूही देवांगन ने 978 अंक के साथ 8वां स्थान हासिल किया था. वेंकट वर्ल्ड लेवल पर 117 और वर्ल्ड टूर लेवल पर 64 रैंकिंग पर हैं.

क्रिकेट के शौकीन थे वेंकट
वेंकट ने नारद पोस्ट से अपने शुरुआती दौर से लेकर अभी तक के सफर के लम्हों को शेयर किया. उन्होंने कहा कि वे 1996 से 2006 तक क्रिकेट के शौकीन थे. बैडमिंटन में भी हाथ आजमाते थे. 12वीं के एग्जाम से एक महीने पहले क्रिकेट और बैडमिंटन के नेशनल गेम की तारीख भी आ गई. पढ़ाई और गेम दोनों का दिमाग में टेंशन चल रहा था. इस बीच घर वालों का सपोर्ट मिला और उन्होंने क्रिकेट और बैडमिंटन का नेशनल गेम खेला. साथ ही, 12वीं की परीक्षा भी दिलाई. खुद की तैयारी को देखते हुए पास होने का कम ही चांस था, लेकिन 73 परसेंटेज से पास हुए. उन्होंने कहाए पैरेंट्स को बच्चों पर दवाब नहीं बनाना चाहिए. बच्चों को हमेशा अपने मन का करने देना चाहिए. इससे बच्चे अपने मुकाम हो हासिल करने में कामयाब होंगे.

क्रिकेट छोड़ने का नहीं है दुख
वेंकट ने कहा कि जब वे क्रिकेट खेलतेथेए तब छत्तीसगढ़ में ज्यादा स्कोप नहीं दिखा. वर्तमान में बीसीसीआई से मान्यता मिल गई है. उनके साथ खेलने वाले कई खिलाड़ी छत्तीसगढ़ टीम से खेल रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें क्रिकेट छोड़ने का कोई दुख नहीं है.

इन्होंने दिखाया था रास्ता
वेंकट ने बताया कि अगर उनकी मुलाकात छत्तीसगढ़ बैडमिंटन संघ के सचिव और कोच संजय मिश्रा से नहीं होती तो शायद वे क्रिकेट खेलते रहते. 2006 में भिलाई में कोच संजय मिश्रा से पहली बार मुलाकात हुई. उस दौरान उन्होंने कहा था कि सोच लो आगे क्या खेलना है. इसके बाद से ही उन्होंने बैडमिंटन को प्राथमिकता दी.

वेंकट के नाम हैं ये रिकॉर्ड्स
वेंकट के नाम कई रिकॉर्ड हैं. वर्तमान में मिक्स्ड डबल्स कैटेगरी में इंडिया नम्बर.1 हैं. वर्ल्ड लेवल पर 117 और वर्ल्ड टूर लेवल पर 64 रैंकिंग है.

नोट - नारद पोस्ट में खबर प्रकाशित हो चुकी है.

रविवार, 11 मार्च 2018

समर कैंप से शुरू हुआ सफर, अब है इंटरनेशनल शटलर, सिद्धार्थ से ही जानिए उनकी कहानी


छोटा थातो फुटबॉल खेलता था. कपड़े बहुत गंदे होते थे. एक बार दोनों हाथ भी टूट गए. मम्मी ने फुटबॉल खेल पर रोक लगा दी और इंडोर गेम खेलने कहा. इस बीच अखबार में सप्रे शाला में समर कैंप की खबर छपी. मम्मी ने एडमिशन करा दिया. इसके बाद क्या थामैंने भी फुटबॉल ने नाता तोड़ा और बैटमिंटन से जोड़ लिया. यह आप-बीती है स्वीडिश इंटरनेशनल बैडमिंटन टूर्नामेंट और आइसलैंड ओपन इंटरनेशनल बैडमिंटन कॉम्पीटिशन के विनर सिद्धार्थ प्रताप सिंह की. पिछले ही दिनों रायपुर पहुंचे सिद्धार्थ ने खेल के सफर को लेकर जो कुछ कहासुनिए उनकी ही जुबानी… 

जब मैंने बैडमिंटन खेलना शुरू कियातब 5वीं में पढ़ता था. फुटबॉल खेलने के दौरान हाथ टूट गए थेलेकिन उसके बाद भी मैंने बैडमिंटन के अच्छे शॉट्स खेले. कोच कविता दीक्षित ने मम्मी पूनम सिंह से कह दिया कि बैडमिंटन अच्छा खेल रहा है. इसको यही गेम खेलने दीजिए. इसके बाद पूरे परिवार का सपोर्ट मिलने लगा. मैं तीन महीने में डिस्ट्रिक्ट खेलकर चैम्पियन बन गया. शुरुआती दिनों में सिर्फ एन्जॉय के लिए बैडमिंटन खेला करता थालेकिन जैसे-जैसे गेम जीतने लगारैंक मिलती गईतो मेरे अंदर खेलने की भावना बढ़ते चली गई.

टॉप-10 में आने में लगे चार साल
मैं कड़ी मेहनत कर तीन महीने में डिस्ट्रिक्ट चैम्पियन बन गयालेकिन ऑल ओवर इंडिया टॉप-10 में जगह पाने में चार साल लग गए. इस बीच कई बार विनर बना और रनरअप भीलेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी. जब भी जीत नहीं पाता थातो मम्मी हिम्मत देती थी और कहती थी कि आगे बेहतर खेलना.

रायपुर फैसिलिटी के मामले में बहुत पीछे
छत्तीसगढ़ से बहुत अच्छे प्लेयर निकले हैं. छत्तीसगढ़ में खिलाड़ियों के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है. दिल्लीगुजराजमहाराष्ट्र की बात करेंतो वहां एक साथ आठ से दस कोर्ट हैंलेकिन रायपुर में यह सुविधा नहीं है. यहां पर भी खिलाड़ियों के लिए कोर्टजिमदौड़ने के लिए ग्राउंड के अलावा अन्य सुविधाएं होनी चाहिए. उसके बाद ही अपना स्टेट आगे बढ़ पाएगा.

रायपुर आकर हो गया था लिमिटेड
मेरे कैरियर को देखते हुए फैमिली मेम्बर और कोच ने गोपीचंद एकेडमी में ट्रेनिंग लेने के लिए भेज दिया. वहां ट्रेनिंग के दौरान मैंने खेल को और बेहतर किया. इस बीच रायपुर में सा ट्रेनिंग सेंटर खुलने वाला थातो मैं रायपुर आ गया. रायपुर में बेहतर सुविधा नहीं होने से मैं खुद को लिमिटेड महसूस करने लगा. इसके बाद दोबारा प्रकाश पादुकोण का कोचिंग सेंटर ज्वाइन करने की कोशिश की. तीन दिन ट्रायल के बाद चयन हो गया. फिलहाल वहीं ट्रेनिंग ले रहा हूं. वहां ऑल इंडिया के सीनियर खिलाड़ी ट्रेनिंग लेते हैं. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

अपने भाई से बहुत कुछ सीखा
मैंने अपने भाई जयदित्य प्रताप सिंह से बहुत कुछ सीखा है. कभी कोई शॉट खेलने में कंफ्यूजन रहता हैतो भाई से पूछता हूं. उसके खेलने का तरीका शानदार है. कई शॉट्स अच्छा खेलता है. मैं उससे हर दिन सीखने की कोशिश करता रहता हूं.

पापा का सपना कर रहा हूं साकार
जब भी जीत हासिल करता हूंतो अच्छा लगता है क्योंकि पापा का सपना था कि मैं स्ट्रीक वाले गेम खेलूं. मैं और मेरा भाई दोनों बैडमिंटन में अच्छे से अच्छा परफॉर्म करने की कोशिश करते हैं.



सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

दो दिनों से इंटरनेट पर छाईं प्रिया प्रकाश के नाम इंडिया न्यूज के युवा पत्रकार आकाश वत्स का खुला खत

प्रिया प्रकाश वारियर के नाम बधाई खत, प्रिय, प्रिया प्रकाश. सबसे पहले आपको ढेरों शुभकामनाएं और बधाई, चुकि इंटरनेट पर वायरल होने वाला ही आज कल असल में नायक है और हकीकत यही है कि आप आज इंटरनेट की असली नायिका हैं. दक्षिण की आप एकलौती अभिनेत्री हैं जिसने 72 घंटे में ही समूचे उत्तर भारत के युवा दिलों की घंटी को एक साथ बजा दिया है. आपको पुन: बधाई. पहली बार में 26 सेकेंड का मस्त-ए-निगाह वाला वायरल वीडियो देखकर मैं भी घायल सा हुआ पर स्कूल से विदा लिए 14 साल हो गए हैं तो कुछ देर में संभल गया.

माहौल भी भला वैलेंटाइन वीक का है, ऐसे में ये नाज़-अंदाज़-नख़रे-रूमानियत-अदा-ख़ामोशी-आंख-भौंह की बात ज्यादा चल रही है, इसी बीच वीडियो सामने आया तो समझिए कि दिलों में आग ही लग गई. आपकी आतिश कदह निगाहें इस वैलेंटाइन में नाउम्मीद हुए आशिक के लिए अमृत का काम कर गई. वैसे, अभिनय इसी का नाम है जो लोगों को उसकी हकीकत से परिचय करा दे. आप इसमें सफल हो गई हैं. आपको फिर से बधाई.
देखते ही देखते पूरा भारत आपका नाम जान गया, लेकिन मुझे उस लड़के का नाम नहीं मालूम चल रहा जो आपकी आंखों की अदा को देखकर दोस्त के कंधे पर ही अपनी जान को टिका देता है. धीरे-धीरे हर एक बात मालूम चली कि ये किसी मलयालम फिल्म का गीत का हिस्सा है. फिर आपकी उम्र, आपकी शिक्षा, आपकी पसंद कमोबेस आपकी हर एक बात से हर कोई वाकिफ हो चुका है.
आंखों की इस शालिन भाषा में हर कोई स्कूल के दौर में बात किया ही होगा, मेरी आंखों में तेरी दुनिया और तेरी आंखों में मेरी दुनिया. बाकी सब इस मासूमियत पर कुर्बान हो जाओ. 14 फरवरी आने में जब कुछ घंटे बाकी हैं, ऐसे में मुझे फिर से मेरे स्कूल की चौखट पर ला पटकने के लिए आपको तहे दिल से शुक्रिया.
ये वीडियो मेरे जैसों के लिए भी बाग़ों में बहार है, जो इस इश्क़ को समझकर भी स्कूल वाली हरकतें नहीं कर सकता. आपको पुन: बधाई. आपकी पहली फिल्म पर्दे पर आने से पहले आप सुपरस्टार बन गईं हैं. आंखों वाली अल्हड़ अदा के लिए देश आपका शुक्रगुजार रहेगा.
लेखक - आकाश वत्स