मैंने न तो किसी विश्वविद्यालय
से वीडियो एडिटिंग का कोर्स किया है और न ही ट्रेनिंग… एक दिन मन में आया कि क्यों
न एक वीडियो एडिट किया जाए। वाट्सअप पर आने वाले वीडियो को देखकर बार-बार मेरा मन भी
करता था। इस बीच एक दिन मैंने गुगल बाबा को प्रणाम किया और उसके बाद फ्री वाला वीडियो
एडिटिंग का सॉफ्टवेयर तलाशने लगा, जो काफी मशक्कत करने के बाद मिल गया। इसके बाद क्या…
नेक काम में देरी थोड़े न कोई करता है। सॉफ्टवेयर
को डाउनलोड किया। फिर सोचा कि किस टॉपिक पर पहला वाडियो तैयार किया जाए… ऑफिस
के कुछ साथियों से भी पूछा, उनका जवाब था कि दिवाली पर ही कुछ देख लो, क्योंकि दिवाली
के बस कुछ दिन ही तो बचे हैं। मैंने भी सोचा कि जैसा भी वीडियो बने, लेकिन दिवाली पर
बधाई देने वाला ही वीडियो तैयार करूंगा। वीडियो बनाने के दौरान ऑफिस के साथी अंकुश भाई
से कुछ मदद भी लेनी पड़ी और आधे घंटे के बाद एक वीडियो तैयार हो गया, जो कुछ ऐसा है… क्लिक करें और वीडियो देख सकते हैं… और हां... मुझे सुझाव देना न भुलिएगा…
गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017
शनिवार, 14 अक्तूबर 2017
रोना आता है जब त्योहार में घर से दूर रहता हूं
त्योहार पर घर से दूर
रहना कितना उदास कर देता है, यह वही समझ सकते हैं, जो रोजी-रोटी की जद्दोजहद
के चलते चाहकर भी ऐसे समय में परिवार के पास नहीं पहुंच पाते। मैं भी घर और परिजनों से दूर हूं। मेरे जैसे कई हजारों लोग भी त्योहार पर अपने घर नहीं
जाते होंगे। ज्यादा से ज्यादा यह कि त्योहार के दिन घरवालों से फोन पर बात कर ली।
हालांकि अब टेली कॉलिंग की सुविधा भी है। अपनी बात करुं, तो त्योहार के मौके पर घर पर ना जा पाना, मुझे
रुला देता है। कुछ देर को जी
चाहता है कि सब छोड़-छाड़कर घर भाग जाऊं। परिवार के साथ खुशियां मनाऊं, लेकिन यह मुमकिन नहीं। मैं पिछले 11 साल से घर से दूर हूं। कॉलेज के समय त्योहार से पहले लंबी छुट्टी पर घर चला जाता था। नौकरी शुरू
होने पर क्या त्योहार और क्या आम दिन, सब एक जैसे हो
गए। कई बार तो पता तक नहीं चलता कि आज कोई त्योहार है। पढ़ाई के दौरान दुर्गा पूजा में घर जाता था, तो
दीपावली और छठ मनाकर ही लौटता था। अब ले-देकर ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी मिलती है। इसमें भी आने-जाने का दिन शामिल होता है। मैं बिहार
के मधुबनी जिले का रहने वाला हूं।रायपुर से बिहार के
लिए ज्यादा ट्रेनें भी नहीं हैं। कुछ साल पहले तक तो सिर्फ एक ट्रेन हुआ करती थी साउथ बिहार एक्सप्रेस। रायपुर से सुबह 8 बजे सवार हों, तो अगले
दिन सुबह 9 बजे
राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्टेशन पहुंचाती है। फिर बस से मधुबनी तक के सफर में करीब 4-5 घंटे लगते हैं। मधुबनी बस स्टैंड पर अगर फौरन गाड़ी मिल जाए, तो समझिए आप किस्मत के धनी
हैं। नहीं तो फिर किसी सवारी गाड़ी का इंतजार करें या फिर ऑटो वाली
की लूट का शिकार बनें। पिछले कई सालों की तरह इस साल भी मुझे दीपावली घर से दूर ही
मनानी होगी। यह और बात है कि लंबे अरसे बाद मुझे परिवार के साथ छठ पूजा मनाने का मौका मिलने वाला है। छठ पूजा का आंखों देखा हाल ‘जनता दरबार’ पर आपसे जरूर शेयर करूंगा। तो फिर लगे रहिए, मजे लेते रहिए और सुझाव भी देते
रहिए।
गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017
तैयार रहो भाई…एक और बाबा की होगी धमाकेदार एंट्री
बाबा…यह शब्द सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं। दिमाग में फौरन खबरें चलने लगती हैं, ठगी, धोखाधड़ी, महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ आदि-आदि। यहां तक कि आप बिना जाने-समझे पुरानी कुंडली को खंगालते हैं और नए सिरे से कुंडली तैयार करते हैं। यह भी आसाराम, राम रहीम जैसा कैरेक्टर लैस होगा। मैं बाबाओं का सपोर्ट एकदम नहीं करता हूं, लेकिन कुछ बाबाओं के चलते सभी को गलत बताना भी सही नहीं है। जिस प्रकार हाथ की सभी उंगलियां एक बराबर नहीं होती हैं, उसी प्रकार सभी बाबा एक तरह के नहीं होते हैं। राम रहीम को सजा होने के बाद देशभर में फैले बाबाओं पर चर्चा गर्म है। आसाराम, सुखबिंदर कौर उर्फ राधे मां, सच्चिदानंद गिरि उर्फ सचिन दत्ता, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ऊँ नमः शिवाय बाबा, नारायण साईं, रामपाल, आचार्य कुशमुनि, बृहस्तपति गिरि और मलखान सिंह खासे मशहूर हैं।
मैं जिस बाबा की बात कर रहा हूं, उसके बारे में खुद बाबा तक नहीं जानते हैं। मैं भी नहीं जानता था, लेकिन करीब-करीब जानने लगा हूं। नए बाबा की धमाकेदार एंट्री होने वाली है। इसको लेकर तैयारी जोरों से चल रही है। अब आप भी सोच रहे होंगे कि यह बाबाकौन है, नाम क्या है। यह बाबा हैं… कुडकुडे बाबा। बाबा और उनकी खासियत के बारे में अधिक जानकारी के लिए ‘जनता दरबार’(jantadrbar.blogspot.in) पर दोबारा तशरीफ लाइए।
सोमवार, 9 अक्तूबर 2017
कलम छोड़कर लैपटॉप थामने तक की कश्मकश
पत्रकारिता करते हुए
महज पांच साल ही हुए हैं। प्रिंट मीडिया के कई संस्थानों में
काम करने का अवसर मिला। इस दौरान कई नई चीजें भी जानने-सीखने को मिली। कहीं खुलकर लिखने की आजादी मिली, तो कहीं चेहरा और विभाग के अधिकारियों को देखकर खबरें लिखने का फरमान भी मिलता था। फॉलो करना
मजबूरी भी थी, नहीं करता तो
नौकरी से हाथ धो बैठता। इसलिए
बॉस का आदेश हमेशा सर-आंखों पर रखना होता था। इस बीच मैंने डिजिटल मीडिया में एंट्री की। कोई अनुभव
नहीं था। एकदम शून्य था। ऑफर
लेटर मिलने के बाद कई लोगों को बताया कि अब मैं अखबार
में नहीं, बल्कि मोबाइल और लैपटॉप
में दिखाई दूंगा। कई लोगों ने तो सुनते ही विरोध किया। इतने अच्छे से नौकरी चल रही है। डिजिटल मीडिया
में जाकर कुछ नहीं होगा। जो नाम है, वह भी खत्म हो
जाएगा। वहां से अगर प्रिंट मीडिया में एंट्री करना चाहोगे, तो संभव नहीं होगा। सभी की बातों को सुनने के बाद मेरा भी दिमाग काम नहीं
कर रहा था। आखिर करूं, तो करूं क्या। बीच मझधार में फंस
गया था। लेकिन हिम्मत जुटाकर मैंने डिजिटल मीडिया की दुनिया में कदम रख दिया। कुछ
दिनों तक वाकई उन सभी लोगों की कही बात याद आती थी, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे मेरे अंदर हिम्मत आती गई। सही बताऊं तो, दोस्तों प्रिंट मीडिया की दुनिया का अलग मजा है और डिजिटल मीडिया का अलग। मौका मिले, तो एक बार जरूर काम कर के देखिएगा।
आपको खुद ब खुद पता चल
जाएगा। वैसे बता दूं, मेरे साथ अभी प्रिंट मीडिया के जैसे अनुभव डिजिटल मीडिया में नहीं पेश आए हैं। नए तजुर्बों के साथ आपसे ‘जनता दरबार’ पर नए टॉपिक के साथ फिर मुलाकात होगी।
गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017
विश्वविद्यालय परीक्षा में बैठेंगे गणेश भगवान
भले
शेयर बाजार गोते लगाए, बाजार चरमरा कर गिरनेवाला हो, दिवाली में लक्ष्मी-गणेश की पूजा करीब-करीब हरेक हिंदूवादी परिवार, प्रतिष्ठान में जोर-शोर से होता है। गणेश चतुर्थी में तो पूरा महाराष्ट्र
ही गणेश के रंग में रंग जाता है। पर इन दिनों बिहार के मिथिलांचल के शान कहे जाने
वाला मिथिला यूनिवर्सिटी जो हुआ है उससे सभी सन्न हैं। लोगों को समझ में नहीं आ
रहा है गणेश भक्ति का प्रभाव है या बीजेपी-नितिश
सरकार का गठबंधन का भगवान के ओर कुछ ज्यादा ही झुकाव या फिर परीक्षा व्यवस्था की
क्वालिटी जांच करने का अनोखा तरीका -- यूनिवर्सिटी प्रशासन ने तो गणेश भगवान को ही
परीक्षा में बिठाने की ठान ली है। हाल ही में यूनिवर्सिटी प्रशासन ने परीक्षा के लिए जो एडमिट कार्ड जारी
किया वहां पर अभ्यर्थि के जगह पर भगवान गणेश का सजीव फोटो लगा दिया और उनके
हस्ताक्षर भी गणेश के नाम से करवा लिए। जिन विधार्थि के नाम से एडमिट कार्ड निकला
है वे भाई परेशान होकर मारे फिर रहे हैं कि बिना बताए यूनिवर्सिटि ने उनका भगवान
गणेश के साथ गठबंधन तो करवा दिया लेकिन परीक्षा में अब जाएगा कौन? कहां से लाए गणेश भगवान को? हम सभी मिथिला
यूनिवर्सिटी पूर्व छात्र जो त्रिवर्षीय बीए की डिग्री को चार साल में लेकर निकले, मिथिला यूनिवर्सिटी प्रशासन के इस कारगुजारी को लेकर काफी हलाकान एवं
परेशान हैं और अपनी सारी संवेदनाएं इस छात्र को समर्पित करते हैं। क्योंकि हमारा
तो यूनिवर्सिटी ने सिर्फ एक साल जाया किया लेकिन पता नहीं इस छात्र के कितना समय
चला जाएगा। कई लोग तो कहते हैं कि भगवान को पाने में कई युग लग जाते हैं। पता नहीं
क्या होगा इस भाई का? “ वैसे भी हमसे जो पहले लोग-बाग
लालू डिग्री में यूनिवर्सिटी में परीक्षा दिए थे, वो तो
घरे ले जाकर कॉपी लिखे पर पता नहीं हमारे समय का हुआ, ससुरा
सीएम आर्टस में सेंटर था एको गो विधार्थि को चिटे नहीं ले जाने देता था”। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस पर अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा की चूंकि एडमिट
कार्य आउट सोर्स किया गया था इसलिए ऐसा हो गया। हम इस मामले को दिखवाते हैं। हम
आपकी बात से सहमत हैं- “आउट सोर्सिंग न बहुते बेकार चिज
हैं उधर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप परेशान हैं, छत्तीसगढ़
में रमन सिंह और ई यूनिवर्सिटी में बेचारा ई परिक्षार्थि”। “प्रशासन-सुशासन बाबु पर सोचिए बेचारे इस भाई का क्या हुआ होगा”। क्या यूनिवर्सिटी प्रशासन को इन्हें मुआवजा नहीं देना चाहिए? पर मिलेगा नहीं। ये तो बिहार हैं आप तो जानते हीं शिक्षा व्यवस्था के साथ
सबसे खतरनाक एक्सपेरिमेंट यहीं होता है। शायद इसलिए यहां कभी गौतम बुद्ध को ज्ञान
मिल जाता था तो कभी घर में ही कापी ले जाकर परीक्षा देने का चलन था। भाई अब इस
राज्य में मामला एक कदम और आगे निकल गया अब गणेश जी को आकर परीक्षा देना पड़ रहा
है। उनको मजबूरी में साईन भी करना पड़ा है....ये प्रभु यहां को तो भगवान ही मालिक.....जय
गणपती बप्पा मोरया
सौजन्य – Avdhesh Mallick
नोट – इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक
के निजी विचार हैं। इस लेखक में दी गई
किसी भी सूचना की ‘जनता दरबार’ उत्तरदायी नहीं है.
सोमवार, 2 अक्तूबर 2017
न बोलने की आजादी और न ही लिखने की
पत्रकारों को बोलने की आजादी नहीं है... सच लिखना तो जुर्म माना जाता है... ऐसे में बताओ भला न कुछ बोल सकते हैं और न ही लिख सकते हैं... यह कैसी आजादी है... सोमवार को पत्रकारों ने रायपुर प्रेस क्लब से राजभवन तक शांति मार्च निकाल आवाज बुलंद की... शांति मार्च में प्रदेश भर के पत्रकार साथी सम्मिलित हुए। देश भर में पत्रकारों के ऊपर लगातार हमले हो रहे हैं। हाल ही में बीजापुर से एक वायरलेस सन्देश लीक हुआ है। जिसमें रिपोर्टिंग के लिए गए पत्रकारों को मरवा देने के निर्देश दिये जा रहे हैं। इस वायरलेस सन्देश के सामने आने के बाद पूरी पत्रकार बिरादरी चिंतित हो उठी है। पत्रकार एकजुटता का संदेश दिया गया। शांति मार्च में 300 से अधिक पत्रकार अपनी इसी चिंता और अपने साथियों की सुरक्षा की मांग को शांति मार्च निकाला गया और शामिल हुए।
रविवार, 1 अक्तूबर 2017
रायपुर का नाम फिर हुआ रोशन
बधाई हो… रायपुर का नाम फिर से रोशन हुआ है। रायपुर
का स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट देशभर में कस्टमर सेटिस्फेक्शन के मामले में एक
बार फिर से पहले स्थान पर रहा। देश के 53
एयरपोर्ट को पीछे छोड़ते हुए रायपुर एयरपोर्ट ने
अपनी यह जगह बनाई। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की हाल ही में जारी सर्वे
रिपोर्ट में रायपुर एयरपोर्ट को कस्टमर्स ने सुविधाओं के मामले में
सर्वश्रेष्ठ बताया। रायपुर एयरपोर्ट के नाम से पहचाने जाने
वाले इस एयरपोर्ट का नाम 24 जनवरी 2012
को स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट किया गया था। स्वामी
विवेकानंद ने अपनी किशोरावस्था में दो साल रायपुर में बिताए थे और उसी की याद में
इसका यह नामकरण किया गया।
डर सा लगता है कुछ लिखने में
डर सा लगता है कुछ लिखने में। सोचता हूं अगर मैं
कुछ लिखता हूं और उसमें कोई गलती हो जाती है तो आप क्या कहेंगे? यही बोलेंगे न कि देखो
इसको लिखना भी नहीं आता है और चला है ब्लॉग लिखने। पर मैं आपको बता दूं मुझे आपके बातों
का जरा सा भी अफसोस नहीं होगा, क्योंकि मुझे अपनी गलती जानने और उसको सुधारने का एक
सुनहरा मौका मिलेगा। वैसे मैं आपको पहले ही बता देता हूं कि मैं हिन्दी का जानकार तो
नहीं हूं, पर फिर भी लिखना चाहता हूं। लिखने को अनगिनत टॉपिक है। मैं सुबह उठने से
लेकर रात के सोने तक के डेली रूटीन को भी लिखूं तो मुझे बहुत मजा आएगा। आप का पता नहीं,
पर कोशिश करुंगा कि आपको भी पढ़ने में मजा आए। मेरे इस ब्लॉग पर आप सभी का दिल से स्वागत
है। आज(01 अक्टूबर 2017) से लिखने के सिलसिला का श्रीगणेश करने जा रहा हूं।
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